कुदरत का ऐ दुनिया वालो
कैसा दुनिया पर ज़ुल्म हुआ
खिलने से पहले ही देखो
कैसे इक जीवन खत्म हुआ
ना हंसा खेला, खाया न पिया
"घायल" इस दुनिया में वो
दो दिन भी और नहीं था जिया
इस नन्हीं सी उमरिया में
कैसे इक यौवन खत्म हुआ
इक बाग़ में ..........
लगा पौधा
दिया पानी.........
खिली कलियाँ
था खुश माली
पर हा......
खिली कलियाँ खिली न रहीं
माली की ख़ुशी ना हुई पूरी
बनने से पहले फूल कली
मुरझाई और फिर टूट चली
माझी के हाथों से नैया
डोली और चप्पू छूट चली
जाने कव्वे को क्या था हुआ
इस खिली उभरती कली का जो
जीवन ना "उसे" मंजूर हुआ
झपटा कव्वा .....
टूटी डाली
कब बिखरी कली ना इल्म हुआ
यौवन पे लाली आ न सकी
प्रभु को खुशहाली भा ना सकी
ऐ प्रभू मुझे तू बता ज़रा
क्या मासूम पे भी तुझे
दया आ ना सकी
मेरे देखते-देखते ही देखो
कैसे इक जीवन खत्म हुआ
इस इतनी लम्बी दुनिया में.........
क्या तुझे ना कोइ और मिला
ऐ मौत तुझे था यहीं आना
क्या नहीं कोइ दूजा ठौर मिला
देखो-देखो दुनिया वालो
क्या यौवन-औ-मौत का मिलन हुआ
जिसने ना कभी रोना सीखा
जो हर पल ही मुस्काया था
कैसे हंस कर उसने देखो
मृत्यु को भी गले लगाया था
तुझे शर्म ना आई ऐ भगवन
जब ऐसी मौत को देख के भी
तू मन्द-मन्द मुस्काया था
सच ही लोगो ये कलयुग है
इसमें जो भी हुआ
वो कम ही हुआ
कुदरत का ऐ दुनिया वालो
कैसा दुनिया पर ज़ुल्म हुआ
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