Monday, November 19, 2012



ऊपर वाले को भी हमारी कमी खलने लगी है 
देखो-देखो मेरी उम्र ढलने लगी है 

एक साल और हो गया कम 
इस जहां की बस्ती अब उजड़ने लगी है 

उलटी गिनती हो चुकी है शुरू
50.51..52...53.....54....55.......56.........
और लो .......... 57   
भी हुए पूरे 

आज न जाने क्यूं 
ये वस्त्र  मैले व् पुराने लगने लगे हैं 

बस अब नये वस्त्र आने वाले हैं 
हम अब यहाँ से जाने वाले हैं 

जो पल बाकी हैं उन्हें हंसते-खेलते गुजारना होगा 
अपनी सब काबलियतों  को निखारना होगा 

आखिर अपने घर वापिस जाना है
उस भेजने वाले को भी तो मुंह दिखाना है 

जल्दी जल्दी  सब समेट लूं 
अपनी आभा को कुछ और निखार लूं

बस इतना समय दे देना मालिक 
अपनी .....
न-न तेरी बिछाई बिसात 
को खुशी खुशी खेल सकूं 

फिर जब चाहे आवाज़ दे लेना
मैं दौड़ा  चला आऊँगा 
तेरे आगोश में सो जाऊंगा 



Friday, November 16, 2012


आओ कुछ गुनगुनाएं 
कुछ मुस्कराएं
गीत कोई नया गायें 
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क्या अद्भुत नज़ारा है 
सुबह का उजाला है 
प्रकृति ने देखो आज कैसा 
चित्र बना डाला है 
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खुद-बा-खुद संगीत हो गयी है प्रकृति
कितनी रंगीन हो गयी है कलाकृति 
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यह कुछ और नहीं आप को
सुप्रभात कहने का एक 
नया अंदाज़ है 
देखो फिर हो गया 
एक नये दिन का 
आगाज़ है 
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धन्यवाद् दें आओ 
उस ईश्वर  को जिसने हमारे लिए 
ही दुनिया इतनी खूबसूरत बनाई है 
बधाई हो-बधाई हो 
आप को नए मंगलमय दिन की बधाई हो 
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नया  दिन आप के लिए नई नई सौगातें लाये 
आपके जीवन को महकाए 
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हर पल खुशी से भर जाए 
शुभ दिन मंगलम 

Tuesday, November 13, 2012


स्वर्ग लोक से ............समस्त देवी-देवता 
वैकुण्ठ से .................लक्ष्मी-नारायण
कैलाश से..................उमा-शंकर
ब्रम्ह लोक से............ब्रम्हा 
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और 
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धरती से .................
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स्वयं हम ...............
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अर्थात पूनम-रवि "घायल"
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.आप को दीपावली की 
तहे दिल से 
शुभ-कामनाएं 
देते हैं 


ईश्वर की 
आप पर...........
आपके अपनों पर .........
और सम्पूर्ण मानव जाती पर............... 
दया-दृष्टि व् कृपा दृष्टि बनी  रहे

आने वाला वर्ष
शुभ हो  
मंगलमयी हो 
भाग्यशाली हो 
शान्ति-प्रदायक हो 
और .................
और जो-जो ......
जो कुछ भी सच्चे 
सरल हृदय से मांगे
इश्वर 
सब-की............ 
सब जायज़ इच्छाएं पूर्ण करें 

दीपावली अभिनंदन 

Sunday, November 4, 2012

बे-शर्म भगवान


कुदरत का ऐ दुनिया वालो
कैसा दुनिया पर ज़ुल्म हुआ
खिलने से पहले ही देखो 
कैसे इक जीवन खत्म हुआ 

ना हंसा खेला, खाया न पिया 
"घायल" इस दुनिया में वो
दो दिन भी और नहीं था जिया 
इस नन्हीं सी उमरिया में 
कैसे इक यौवन  खत्म हुआ 

इक बाग़ में ..........
लगा पौधा 
दिया पानी.........
खिली कलियाँ 
था खुश माली 

पर हा......
खिली कलियाँ खिली न रहीं 
माली की ख़ुशी ना हुई पूरी 
बनने से पहले फूल कली 
मुरझाई और फिर टूट चली

माझी के हाथों से नैया 
डोली और चप्पू छूट चली 

जाने कव्वे को क्या था हुआ 
इस खिली उभरती कली का जो 
जीवन ना "उसे" मंजूर हुआ 
झपटा कव्वा .....
टूटी डाली 
कब बिखरी कली ना इल्म हुआ 

यौवन  पे लाली आ न सकी 
प्रभु को खुशहाली भा ना सकी 

ऐ प्रभू मुझे तू बता ज़रा
क्या मासूम पे भी तुझे 
दया आ ना सकी 

मेरे देखते-देखते ही देखो 
कैसे इक जीवन खत्म हुआ 

इस इतनी लम्बी दुनिया में.........
क्या तुझे ना कोइ और मिला
ऐ मौत तुझे था यहीं आना 
क्या नहीं कोइ दूजा ठौर मिला 

देखो-देखो दुनिया वालो 
क्या यौवन-औ-मौत का मिलन हुआ 

जिसने ना कभी रोना सीखा 
जो हर पल ही मुस्काया था 
कैसे हंस कर उसने देखो 
मृत्यु को भी गले लगाया था 

तुझे शर्म ना आई ऐ भगवन
जब ऐसी मौत को देख के भी
तू मन्द-मन्द मुस्काया था 

सच ही लोगो ये कलयुग है 
इसमें जो भी हुआ 
वो कम ही हुआ 
कुदरत का ऐ दुनिया वालो
कैसा दुनिया पर ज़ुल्म हुआ  

यह दुनिया तो बस सराए है



बा-नूर 

मैं रवि "घायल" इक रमता जोगी 
जिसका ना कोइ अता-ना-पता
ना ठौर-ना ठिकाना 
यह दुनिया है जिसके लिए 
इक मुसाफिरखाना 

जो दिखता है कोशिश करता हूँ 
जमाने से बांटने की

जो समझ आता है 
कह देता हूँ 
नंगे शब्दों में 

किसी से वैर नहीं सभी अपने हैं 
जो अभी नहीं मिले वो सपने हैं 
काफ़ी गुजर गयी ना 
जाने कितनी बाकी है 
जिस दिन इस देह में आया था 
तभी से मरना शुरू कर दिया था 
रोज़.....हर-पल......तिल-तिल...कर
मर रहा हूँ 
या यूं कह लो.......
जीवन से 
मृत्यु का 
सफर तय कर रहा हूँ  

मगर मायूस नहीं 
ना-उम्मीद नहीं .....
जिस राह पर सदियों से 
सभी चलते आये हैं 
उस पर चलने में कैसी मायूसी 
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ख़ुशी-ख़ुशी सफर तय हो जाए 
मंजिल तक पहुँच जाऊं 
यही कामना है 

यह सभी को समझ आ जाये 
तो मरघट वीराना और 
बस्ती सराय ना कहलाये 

किसी राहगीर ने 
किसी फकीर से पूछा था 
बस्ती की ओर जाने का रास्ता 
फकीर ने बार-बार पूछा 
क्या वास्तव में 
बस्ती की ओर जाना चाहते हो 
तो पथिक के यकीन दिलाने पर 
फकीर ने जो रास्ता बताया  
उस रास्ते ने पथिक को शमशान पहुंचाया 
पथिक बौखलाया 
और वापिस आ कर उसने 
फकीर को 
बहुत भला-बुरा सुनाया 

भला इस-में फकीर ने क्या गलत किया 

जो शमशान में जा बस जाता  है 
वो फिर कभी नहीं उजड़ता 
तो वास्तव मैं बस्ती तो वही हुई ना........

जिसे हम बस्ती (दुनिया) कहते हैं 
क्या आज तक वहां कोइ भी सदा के लिए बस पाया है 
यदि नहीं तो फिर वो बस्ती कहलाने के लायक कैसे हुई 

एक बार दो दोस्त कब्रिस्तान के पास से गुजर रहे थे 
बातें करते करते एक ने ईर्ष्या वश एक कब्र की तरफ इशारा करते 
हुए कहा
देखो कितने चैन से सो रहा है कब्र में सोने वाला 

तभी कब्र में से आवाज़ आयी 
जान दे के यह जगह मिली है 
इतनी महंगी जगह में अगर मैं आराम से सो रहा हूँ 
तब तो तुम ईर्ष्या ना करो .
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तो तुम ही बताओ 
ख़ुशी-ख़ुशी सफर 
गर खत्म हो जाए तो 
रोना किस बात का 
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पर हाँ असमय जाना
सफर बीच में छोड़ जाना 
दुःख और क्षोभ के कारण हो सकते हैं 
इसी बात का तो दुःख है 
की मेरा बेटा
मेरा भाई 
मेरा मित्र 
आज 
सफर को 
अधूरा छोड़ कर ही 
चल दिया 
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शायद वो  हम से ज्यादा समझदार था 
उसने इस सत्य को बहुत जल्दी जान लिया की 
असली बस्ती तो शमशान ही है 
यह दुनिया तो बस सराए है 

भगवान....ईश्वर.........अल्लाह...... तेरा ख्याल रखे


मैं पागल हो जाऊंगा 
__________________
मित्रो बताओ 
जिसे मैं अपने मन
आत्मा में बसा हुआ मानता हूँ 
उसे अपने फेस बुक फ्रेंड कि सूची में से कैसे हटा दूं 
_________________
कोइ मुझे बताए कि उस 
"विक्रांत विज" का मैं क्या करूं 
जो मेरा मित्र है 
भाई है 
बेटा है 
मेरी आत्मा में 
मेरे रोम-रोम में बसा है
कैसे उसे मैं उसे अपनी फेस बुक फ्रेंडज कि 
सूची से अन-फ्रेंड करूं 
_______________ 


आज मन बहुत बैचैन है 

मेरा एक परम मित्र ...
बेटा............
बेटे जैसा 

जो की बहुत ही सूझवान 
यशस्वी
होनहार 
कीर्तिवान तथा 
बहुत ही प्यारा था 

पता चला कि
कल इस नश्वर संसार से 
विदा हो गया 

और में चाह कर भी 
अपने स्वास्थ्य और हालात कि वजह 
से उसका अंतिम बार चेहरा देखने भी उसके घर 
नंगल तक पहुंच पाने में कामयाब नहीं हो पाया 
.
.
मुझे ये दुःख सारी उम्र अपना पीछा नहीं छोड़ने देगा
.
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मुझे मुआफ कर देना मित्र 
मगर तुम्हारा चेहरा सदा मेरे ललाट पर 
छपा रहेगा .
.
भगवान....ईश्वर.........अल्लाह......
तेरा ख्याल रखे  

......आमीन