Monday, June 16, 2014

सिर्फ और सिर्फ आप जिम्मेदार हैं


एक दिन एम्प्लाइज जब
ऑफिस पहुंचे तो उन्हें गेट पर
एक बड़ा सा नोटिस
लगा दिखा :” इस कंपनी में
जो व्यक्ति आपको आगे बढ़ने
से रोक रहा था कल
उसकी मृत्यु हो गयी . हम
आपको उसे आखिरी बार
देखने का मौका दे रहे हैं ,
कृपया बारी-बारी से
मीटिंग हॉल में जाएं और उसे
देखने का कष्ट करें .”
जो भी नोटिस पढता उसे
पहले तो दुःख होता लेकिन
फिर
जिज्ञासा हो जाती की आखिर
वो कौन था जिसने
उसकी ग्रोथ रोक
रखी थी … और वो हॉल
की तरफ चल देता …देखते देखते
हॉल के बाहर काफी भीड़
इकठ्ठा हो गयी , गार्ड्स ने
सभी को रोक रखा था और
उन्हें एक -एक कर के अन्दर जाने
दे रहा था.
सबने देखा की अन्दर जाने
वाला व्यक्ति काफी गंभीर
हो कर बाहर निकलता ,
मानो उसके
किसी करीबी की मृत्यु हुई
हो !… इस बार अन्दर जाने
की बारी एक पुराने
एम्प्लोयी की थी …उसे सब
जानते
थे ,सबको पता था कि उसे
हर एक चीज से शिकायत
रहती है …. कंपनी से ,
सहकर्मियों से , वेतन से हर एक
चीज से !
पर आज वो थोडा खुश लग
रहा था …उसे
लगा कि चलो जिसकी वजह
से उसकी लाइफ में
इतनी प्रोब्लम्स थीं वो गुजर
गया …अपनी बारी आते
ही वो तेजी से ताबूत के
पास पहुंचा और
बड़ी जिज्ञासा से उचक कर
अन्दर झाँकने लगा …पर ये
क्या अन्दर तो एक
बड़ा सा आइना रखा हुआ
था.
यह देख वह क्रोधित
हो उठा और जोर से
चिल्लाने के हुआ कि तभी उसे
आईने के बगल में एक सन्देश
लिखा दिखा -
“इस दुनिया में केवल एक
ही व्यक्ति है
जो आपकी ग्रोथ रोक
सकता है और वो आप खुद हैं .
इस पूरे संसार में आप वो अकेले
व्यक्ति हैं
जो आपकी ज़िन्दगी में
क्रांति ला सकता है .
आपकी ज़िन्दगी तब
नहीं बदलती जब आपका बॉस
बदलता है , जब आपके दोस्त
बदलते हैं , जब आपके पार्टनर
बदलते हैं , या जब
आपकी कंपनी बदलती है ….
ज़िन्दगी तब बदलती है जब
आप बदलते हैं , जब आप
अपनी लिमिटिंग बिलीफ्स
तोड़ते हैं , जब आप इस बात
को रीयलाईज करते हैं
कि अपनी ज़िंदगी के लिए
सिर्फ और सिर्फ आप
जिम्मेदार हैं . सबसे
अच्छा रिश्ता जो आप
बना सकते हैं वो खुद से
बनाया रिश्ता है . खुद
को देखिये , समझिये …
कठिनाइयों से घबराइए
नहीं उन्हें पीछे छोडिये …
विजेता बनिए , खुद
का विकस करिए और
अपनी उस
वास्तविकता का निर्माण
करिए जिसका करना चाहते
हैं !
दुनिया एक आईने की तरह है :
वो इंसान को उसके शशक्त
विचारों का प्रतिबिम्ब
प्रदान करती है . ताबूत में
पड़ा आइना दरअसल आपको ये
बताता है की जहाँ आप अपने
विचारों की शक्ति से
अपनी दुनिया बदल सकते हैं
वहां आप जीवित होकर
भी एक मृत के समान जी रहे
हैं।
इसी वक़्त दफना दीजिये उस
पुराने ‘मैं’ को और एक नए ‘मैं’
का सृजन कीजिये !!!”

हम बेवकूफ नहीं हैं...

दस वर्षीय पप्पू
और
उसके पड़ोस में रहने
वाली नौ-
वर्षीय
चिंकी को साथ-साथ खेलते हुए
यह एहसास हो जाता है
कि
वे एक-दूसरे से
बेहद प्यार करते हैं,
और
उन्हें शादी कर लेनी चाहिए।

पप्पू
चिंकी के पिता के पास
पहुंच जाता है,
और हिम्मत जुटाकर
कह डालता है,

"अंकल,
मैं और आपकी बेटी चिंकी
एक-दूसरे से प्यार करते हैं,
और मैं आपसे शादी के लिए
उसका हाथ मांगने आया हूं।

चिंकी के
पिता को नन्हे शरारती पप्पू की हरकत
बेहद प्यारी लगती है,
और वह डांटने के बजाए
मुस्कुराते हुए उससे
से पूछते हैं,

"यार, तुम अभी सिर्फ 10 साल के हो,
और
तुम्हारे पास घर भी नहीं है...
तुम और चिंकी रहोगे कहां?"
पप्पू तपाक से कहता है,

"चिंकी के कमरे में,
क्योंकि वह मेरे कमरे से बड़ा है,
और
वहां हम दोनों के लिए ज़्यादा जगह है...

चिंकी के पिता को अब भी
इस मासूमियत पर
प्यार आता है,
और वह फिर पूछते हैं,

"ठीक है,
लेकिन तुम लोग गुज़ारा कैसे चलाओगे,
आखिर इस उम्र में
तुम्हें नौकरी तो मिल नहीं सकती?"

पप्पू फिर
बहुत शांत स्वर में जवाब देता है,

"हमारा जेब खर्च है ना।
उसे 50 रुपये प्रति सप्ताह मिलता है,
और मुझे 100 रुपये प्रति सप्ताह,
इस हिसाब से हम दोनों के लगभग
600 रुपये हर महीने मिल जाता है,
जो हमारी ज़रूरतों के लिए
काफी रहेगा।

चिंकी के पिता
इस बात से भौंचक्के रह जाते हैं,
कि पप्पू ने इस विषय पर
इतनी गंभीरता से,
और इतनी आगे तक
सोच रखा है

सो,
वह सोचने लगते हैं
कि ऐसा क्या कहें
कि
पप्पू को जवाब न सूझे,
और उसे
इस उम्र में चिंकी से
शादी न करने के लिए
समझाया जा सके

कुछ देर बाद वह
फिर मुस्कुराते हुए पप्पू से सवाल करते हैं,

"यह बहुत अच्छी बात है, बेटे,
कि तुमने इतनी अच्छी तरह
सब प्लान किया हुआ है,
लेकिन यह बताओ,
कि
अगर
तुम दोनों के बच्चे हो गए,
तो क्या
यह जेबखर्च कम
नहीं पड़ेगा?"

पप्पू ने
इस बार भी तपाक से जवाब दिया,

"अंकल, हम बेवकूफ नहीं हैं...
जब आज तक नहीं होने दिए,

तो
आगे भी रोक ही लेंगे।

Sunday, June 15, 2014

आनंदमयी हूँ .....आनंद मैं हूँ ...... आनंद में हूँ

एक मित्र ने पूछा कैसे हैं आप 
मैंने कहा...............

आनंदमयी हूँ

आनंद मैं हूँ 

आनंद में हूँ

जाना कहीं नहीं

बस के 
कंडकटर सी 
बन गयी है 
जिंदगी 

सफर भी 
खत्म नहीं होता 

और 

जाना भी कहीं नहीं
गुस्ताखी हमसे होगी 

सिर्फ एक बार, 


जब सब चलेंगे पैदल 


हम कांधों पर सवार।
कुछ तो शराफ़त सीख ले, ऐ इश्क!, शराब से..
.

.
.

बोतल पे लिखा तो है, मै जानलेवा हूँ...

मत पूछ मेरा कारोबार क्या है,

चाहता तो हूँ  कि
ये दुनिया
बदल दूँ

पर दो वक़्त की रोटी के
जुगाड़ में फुर्सत नहीं मिलती

दोस्तो
मत पूछ मेरा कारोबार क्या है,

मोहब्बत की दुकान चला रहा हूँ
नफरतों के बाज़ार में...

कब्रिस्तान

गुज़रा एक कब्रिस्तान
के पास से
देखा कितनी शांती है
अंदर गया
बहुत सी कब्रें थीं

कई कब्रों पर
कुछ इबारतें भी लिखी थीं

एक कब्र पर लिखा था...

"किसी को क्या इलज़ाम दूं दोस्तो...,
ज़िन्दगी में सताने वाले भी अपने थे,
और दफनाने वाले भी अपने थे"...
हर किसी को मैं खुश रख सकूं वो सलीका मुझे नहीं आता,
जो मैं नहीं हूँ वो दिखने का तरीका मुझे नहीं आता..

'माँ'

राम लिखा, 
रेहमान लिखा;
गीता और कुरान लिखा;
जब बात हुई पूरी दुनियां को एक लफ्ज़ में लिखने की;
तब मैंने 'माँ' का नाम लिखा।

दादी माँ बनाती थी रोटी

दादी माँ बनाती थी रोटी 
🍪पहली गाय की , 
🍪आखरी कुत्ते की
🍪एक बामणी दादी की 
🍪एक मेथरानी बाई 
हर सुबह सांड आ जाता था
दरवाज़े पर गुड़ की डली के लिए
कबूतर का चुग्गा 
🐜किडियो का आटा
ग्यारस, अमावस, पूर्णिमा का सीधा
डाकौत का तेल
काली कुतिया के ब्याने पर तेल गुड़ का सीरा

सब कुछ निकल आता था
उस घर से ,
जिसमें विलासिता के नाम पर एक टेबल पंखा था...

आज 🎳 सामान से भरे  घर में
कुछ भी नहीं निकलता
सिवाय लड़ने की कर्कश 🙉 आवाजों के.......
....
मकान चाहे कच्चे थे
लेकिन रिश्ते सारे सच्चे थे...
चारपाई पर बैठते थे
पास पास रहते थे...
सोफे और डबल बेड आ गए
दूरियां हमारी बढा गए....
छतों पर अब न सोते हैं
बात बतंगड अब न होते हैं..
आंगन में वृक्ष थे
सांझे सुख दुख थे...
दरवाजा खुला रहता था
राही भी आ बैठता था...
कौवे भी कांवते थे
मेहमान आते जाते थे...
इक साइकिल ही पास था
फिर भी मेल जोल था...
रिश्ते निभाते थे
रूठते मनाते थे...
पैसा चाहे कम था
माथे पे ना गम था...
मकान चाहे कच्चे थे
रिश्ते सारे सच्चे थे...
अब शायद कुछ पा लिया है
पर लगता है कि बहुत कुछ गंवा दिया

“तारीख हज़ार
साल में बस इतनी
सी बदली है…
तब दौर
पत्थर का था
अब लोग
पत्थर के हैं..."

किनारे पर तैरने वाली
लाश को देखकर
ये समझ आया...
बोझ शरीर का नही
साँसों का था....
भगवान से वरदान माँगा
कि दुश्मनों से
पीछा छुड़वा दो, 
अचानक दोस्त
कम हो गए...